चलते चलते ठहरा था
बादल कोई कभी यूँ ही
कर गया नर्म ज़मी
सूखी सी पड़ी थी जो अब तक
बादल कोई कभी यूँ ही
कर गया नर्म ज़मी
सूखी सी पड़ी थी जो अब तक
ठहरना फितरत न सही
बंध के रहना यूँ मुमकिन भी न था
बंध के रहना यूँ मुमकिन भी न था
रूठे मौसम सा जाऊँगा
पर लौट के फिर आ जाऊँगा
देख लेना तू
कह देता था ज़मी से अक्सर
पर लौट के फिर आ जाऊँगा
देख लेना तू
कह देता था ज़मी से अक्सर
बदले मौसम,हवाएँ और
जीने के तरीके भी शायद
सिमट चुकी है नमी भी
पलकों की कोरों में
जीने के तरीके भी शायद
सिमट चुकी है नमी भी
पलकों की कोरों में
बंदिशों में जकड़ी आवाज़ें भी
घुट के रह जाती है कहीं
खुद ही खुद से भी
कह पाती कुछ भी
घुट के रह जाती है कहीं
खुद ही खुद से भी
कह पाती कुछ भी
हाँ....
यकीन है तो इतना बस
कुछ वादे आज भी
कहीं कभी पूरे हुआ करते है..........
------प्रियंका
यकीन है तो इतना बस
कुछ वादे आज भी
कहीं कभी पूरे हुआ करते है..........
------प्रियंका
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