मौन
स्पंदित है शिराओं में
शब्द
भावनाओं की सीप में
मोती से
रोज़ ही गढ़ लेते हैं
नया आकार
पर रुक से गए हैं
आज
मन की गलियों से
गुज़रते
गीले हो जाने के डर से
------प्रियंका
स्पंदित है शिराओं में
शब्द
भावनाओं की सीप में
मोती से
रोज़ ही गढ़ लेते हैं
नया आकार
पर रुक से गए हैं
आज
मन की गलियों से
गुज़रते
गीले हो जाने के डर से
------प्रियंका
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