भाव धवल और खुला गगन है
लेकर स्वप्न पंख उडती जाऊं।
अमर प्रेम की प्रबल प्रीत संग
नवगीत नए नित रचती जाऊं।।
लेकर स्वप्न पंख उडती जाऊं।
अमर प्रेम की प्रबल प्रीत संग
नवगीत नए नित रचती जाऊं।।
तेरे प्रेम की पावन सरिता
समरस अंतस में बहती जाए।
पथ चाहे कितना ही दुर्गम हो
कठिनाई बस हल होती जाए।
अनंत प्रेम से संबल लेकर
उत्तंग शिखर नित छूती जाऊं।
अमर ..................................
समरस अंतस में बहती जाए।
पथ चाहे कितना ही दुर्गम हो
कठिनाई बस हल होती जाए।
अनंत प्रेम से संबल लेकर
उत्तंग शिखर नित छूती जाऊं।
अमर ..................................
कुंज कुसुम सी चहुं ओर खिलूं
इक मोहक खुश्बू सी भर जाऊं।
अंधियारे सारे बिसरा कर
नित नया उजाला मैं ले आऊं।
स्वप्न वीथियों से बाहर निकलूं
नवल विहान नित रचती जाऊं।
अमर..................................
-------प्रियंका
इक मोहक खुश्बू सी भर जाऊं।
अंधियारे सारे बिसरा कर
नित नया उजाला मैं ले आऊं।
स्वप्न वीथियों से बाहर निकलूं
नवल विहान नित रचती जाऊं।
अमर..................................
-------प्रियंका
No comments:
Post a Comment