नारी मन --- कर्तव्यों और सम्बन्धों का निर्वहन करते जीवन पर्यंत झंझावातों का सामना करते और प्रतिदिन अनगिनत हिसाब किताब करते हुए उन पलों का सही सही आकलन कहां कर पाता है जो उसने स्वयं के लिए जिए......... अंतर्मन के कोमल नन्हें पंखों से अनन्त आकाश की ऊंचाइयां नापने का एक प्रयास....
Monday, 10 February 2014
अपरिचित कौन
सुप्त तारों को अकस्मात झंकृत सा कर गया
सुषुप्त से हृदय में मधुर गुंजना सी कर गया
गूंजती है जीवन के लय में एक मधुर झंकार सी
खो स्वयं को भी मिली एक मधुर प्यारी पीर सी
पाकर जिसे सम्मुख मुखर सा हो जाता है मौन
हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन
वसंत से छाए हो तुम घनसार सुरभित जीवन हुआ
अनगिनत नव पुष्प खिलते मन मेरा उपवन हुआ
झूम गर्वित मेघ सम आए परितृप्त जीवन हो गया
मेघमय अनुराग से अभिसिंचित सा ये मन हो गया
नयन के सूने निलय में स्वप्न का चितेरा है कौन
हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन
कौन बोझिल से मन में बन मधुर मुस्कान रहता
कौन प्यासे नयन में बन कभी बादल सा झरता
प्राप्त क्या हो सका मुझे पीड़ा के अनोखे से क्रय में
चिर तृप्त सा जीवन हुआ अकस्मात् ही एक क्षण में
अनजान से कुछ बन्धनों में बंदी सा कर गया ये कौन
मेरे हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन.........
©प्रियंका
Saturday, 8 February 2014
एक दिन
कितनी दुआएं मांगी थीं
साथ तेरा इक पाने को
तेरी जिद के आगे नहीं पता था
कभी खुदा भी बेबस होगा
खुश लम्हों में कब सोचा था
अब एसे दिन भी आएंगे
इन चमकीली आंखों का भी
भीगा भीगा मौसम होगा
एक हंसी सुनने की खातिर
रहता था बेताब जो दिल
कहां खबर थी उसकी ही खातिर
दिल का मौसम पुरनम होगा
कब चाहा था कब सोचा था
तुम भी दूर चले जाओगे
खुशियों की धूप चली जाएगी
छाया गम का बादल होगा
यादें संग मेरे छोड के जाना
बोझ नहीं सह पाओगे
आगे तेरे खुशसफर में
न मेरी प्रीत का बंधन होगा
साथ तेरा इक पाने को
तेरी जिद के आगे नहीं पता था
कभी खुदा भी बेबस होगा
खुश लम्हों में कब सोचा था
अब एसे दिन भी आएंगे
इन चमकीली आंखों का भी
भीगा भीगा मौसम होगा
एक हंसी सुनने की खातिर
रहता था बेताब जो दिल
कहां खबर थी उसकी ही खातिर
दिल का मौसम पुरनम होगा
कब चाहा था कब सोचा था
तुम भी दूर चले जाओगे
खुशियों की धूप चली जाएगी
छाया गम का बादल होगा
यादें संग मेरे छोड के जाना
बोझ नहीं सह पाओगे
आगे तेरे खुशसफर में
न मेरी प्रीत का बंधन होगा
©प्रियंका
तुम्हारा मौन
बस खुशबू है कुछ बातों की
पूंजी है उन सौगातों की
जब भी मिलते हो मुझसे तुम
कुछ न कह कर भी
सबकुछ तो कह जाता है
सिर्फ तुम्हारा मौन
कहने सुनने की बात नहीं
कैसे कह दूं तुम साथ नहीं
सिर्फ तुम्हारा मौन....
©प्रियंका
पूंजी है उन सौगातों की
जब भी मिलते हो मुझसे तुम
कुछ न कह कर भी
सबकुछ तो कह जाता है
सिर्फ तुम्हारा मौन
कहने सुनने की बात नहीं
कैसे कह दूं तुम साथ नहीं
दुख के घने अंधेरे में
जब कोई साथ न देता है
चुपके से मुझको
एक दिलासा सा दे जाता है
जब कोई साथ न देता है
चुपके से मुझको
एक दिलासा सा दे जाता है
सिर्फ तुम्हारा मौन....
©प्रियंका
पुरानी आलमारी
आज भी तेरी सौगातें हैं
मेरे कुछ ज़ज्बात हैं उनमें
कितनी प्यारी बातें हैं
कुछ प्यारे बीते मायूस से लम्हे
नम आँखों से मुझको देखें
चुप रहते कुछ भी न कहते
फिर भी जाने क्या क्या कहते
कुछ दीवारों पर चस्पा यादें
कुछ खुशबू बीती बातों की
सब यादें आज भी ताज़ा हैं
उन सारी सौगातों की
डायरी के मायूस से पन्ने
गुलाब के सूखे फूल सभी
कभी खिलखिलाते थे ये पन्ने
ताज़ा थे सारे फूल कभी
हाँ इतना तो मालूम है मुझको
इतनी खबर मुझको भी है
वक़्त की धुल तले दब कर
पन्ने बस दफन हुआ करते हैं
सूखे फूल किताबों में
ताज़ा नहीं हुआ करते हैं
नाउम्मीदी में भी जाने क्यों
इक उम्मीद में साँसें हैं
अलमारी के इक कोने में
आज भी तेरी सौगातें हैं
मेरे कुछ ज़ज्बात हैं उनमें
कितनी प्यारी बातें हैं
©प्रियंका
उदास पेड़
घने पत्तों पर कुछ घमंड से थोडा और लहराया....!!!
पास एक सूखा शज़र नींद से ज्यों जग बैठा...
एक ठंडी से आह मानों अचानक वो ले बैठा...!!!
पेड़ बोला अपने पुराने दिन तुम याद करते हो...
मेरी खुशियों पर तुम क्यों आहें सी भरते हो...!!!
ठूंठ बोला तेरी खुशियों पर नहीं मैं उदास हो रहा हूँ...
अपनी जगह मैं आते कल में तुमको खड़े देख रहा हूँ...!!!
©प्रियंका
अधूरी धूप
आज कल बहुत सर्द सा हो चला है
मौसम ज़िन्दगी का जाने क्यूँ
हमेशा खिलखिलाती थी यूँ ही
वो धूप लौट कर आती ही नहीं
वक़्त के साथ कहाँ गुम हो गयीं
मुस्कुराहटें रूठ सी गयीं हमसे
छिपाते फिरते हैं लोगों से
आँखों की नमी है की जाती ही नहीं
सुना था वक़्त तो यूँ ही उड़ जाता है
पर ठहरा क्यूँ है मेरे कमरे में
जाने क्यूँ घडी की सुइयां
आगे का वक़्त बताती ही नहीं
तुम...तो अपने थे और बेहद अपने
पर ज़माने से बहुत तेज़ चले
जाने क्यूँ एक ये खलिश
दिल से कभी जाती ही नहीं
©प्रियंका
मौसम ज़िन्दगी का जाने क्यूँ
हमेशा खिलखिलाती थी यूँ ही
वो धूप लौट कर आती ही नहीं
वक़्त के साथ कहाँ गुम हो गयीं
मुस्कुराहटें रूठ सी गयीं हमसे
छिपाते फिरते हैं लोगों से
आँखों की नमी है की जाती ही नहीं
सुना था वक़्त तो यूँ ही उड़ जाता है
पर ठहरा क्यूँ है मेरे कमरे में
जाने क्यूँ घडी की सुइयां
आगे का वक़्त बताती ही नहीं
तुम...तो अपने थे और बेहद अपने
पर ज़माने से बहुत तेज़ चले
जाने क्यूँ एक ये खलिश
दिल से कभी जाती ही नहीं
©प्रियंका
सामंजस्य
यंत्रवत चलते दौडते भागते...
संसार की गतिशीलता से सामंजस्य बिठाती है...
सभी की इच्छा अनिच्छा आवश्यकताओं को
पूरा करते मुस्कुराती है....
परन्तु दिन ढल जाने पर घर के काम काज
और बजट का हिसाब लगाते हुए
उन पलों का सही सही हिसाब कहॉ लगा पाती है
जो उसने अपने लिए जिए............
संसार की गतिशीलता से सामंजस्य बिठाती है...
सभी की इच्छा अनिच्छा आवश्यकताओं को
पूरा करते मुस्कुराती है....
परिस्थितियों से संघर्ष करते थककर शिशुओं के कलरव में
सब भूल जाती है....
जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते हुए..
संघर्ष करती जाती है......
सब भूल जाती है....
जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते हुए..
संघर्ष करती जाती है......
परन्तु दिन ढल जाने पर घर के काम काज
और बजट का हिसाब लगाते हुए
उन पलों का सही सही हिसाब कहॉ लगा पाती है
जो उसने अपने लिए जिए............
©प्रियंका
Wednesday, 5 February 2014
तुम आओगे ना
वो खुशगवार मौसम
सपनों की सतरंगी धूप
कुछ मुस्कुराहटो की कलियाँ
हमारी हंसी,खिलखिलाहटों के
कुछ सफ़ेद झरते फूल
मेरा बस मुग्ध होकर
तुम्हें उनको चुनते देखना
मगर आज सर्द मौसम में
कहीं छुप सा गया है सूरज
उदास से ये फूल अक्सर पूछते हैं
कब बदलेगा मौसम
और निखरेगी खुशगवार बन कर फिजा
कुछ तो ज़वाब दो
अपने पसंद के फूलों को चुनने
तुम आओगे ना...
बोलो......................
©प्रियंका
परिवर्तन
मन के उन आइनों में
ना तो वो चेहरे ही रहे अब
ना आईने ही पहले से
सब कुछ तो परिवर्तित होता
समय बदलते देर कहाँ लगती है
वो फूल और तितली का साथ
जैसे कल की ही हो बात
खुशियों में बस हँसते रहना
भर आये जब तक न आँख
कल के अपने आज गैर से
संवेदन बदलते देर कहाँ लगती है
जीवन के इस रंगमंच पर
कितने नाटक अभिनीत हुए
पृथक हो गए पात्र सभी
संवाद सभी विस्मृत से हुए
अंत सदा ना सुखान्त हुए
हृदय बदलते देर कहाँ लगती है
©प्रियंका
सुनो मेघ
घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना
पापा से कहना स्वस्थ रहें
भइया का मार्ग सदा प्रशस्त रहे
भाभी का सौभाग्य अक्षत रहे
मुन्ने को आशीर्वचन तुम दे आना
मत कहना उनसे दर्द कोई
कहना मै तो रानी सी हुई
बस मेरी सारी खुशियों की
अच्छे से खबर तुम दे आना
बागों के उन झूलों की
बचपन के खेल खिलौनों की
उन बिछडी सारी सखियों की
खोज खबर तुम ले आना
माटी की सोंधी खुशबू लाना
मां पापा का सारा प्यार दुलार
कुछ बचपन की यादें लाना
आते आते फिर एक बार
भइया की कलाई भी छूकर आना
घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना..........
©प्रियंका
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना
पापा से कहना स्वस्थ रहें
भइया का मार्ग सदा प्रशस्त रहे
भाभी का सौभाग्य अक्षत रहे
मुन्ने को आशीर्वचन तुम दे आना
मत कहना उनसे दर्द कोई
कहना मै तो रानी सी हुई
बस मेरी सारी खुशियों की
अच्छे से खबर तुम दे आना
बागों के उन झूलों की
बचपन के खेल खिलौनों की
उन बिछडी सारी सखियों की
खोज खबर तुम ले आना
माटी की सोंधी खुशबू लाना
मां पापा का सारा प्यार दुलार
कुछ बचपन की यादें लाना
आते आते फिर एक बार
भइया की कलाई भी छूकर आना
घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना..........
©प्रियंका
यूँ ही कभी
यूँ ही कभी
वक़्त के खजाने से
निकल कर
बिखर गए थे
कुछ मोती......
बड़े खूबसूरत
और दिलकश
मगर आज
खोजने से भी
नहीं मिलते
कही उनके निशाँ
बस.....
खामोशियों
की कब्र में
दफ़न हैं
कुछ दास्तानें
बीते लम्हात की....
©प्रियंका
वक़्त के खजाने से
निकल कर
बिखर गए थे
कुछ मोती......
बड़े खूबसूरत
और दिलकश
मगर आज
खोजने से भी
नहीं मिलते
कही उनके निशाँ
बस.....
खामोशियों
की कब्र में
दफ़न हैं
कुछ दास्तानें
बीते लम्हात की....
©प्रियंका
Tuesday, 4 February 2014
सरस्वती वंदन
वीणावादिनी शारदे मां
अज्ञानता के घन हटाकर
ज्ञान का उपहार दे मां
रिक्त अकिंचन शरण आए
बुद्धि दे व्यवहार दे मां
सहज संसृति की धार दे दे
अभय दे निज प्यार दे मां
सप्त स्वर तुममें समाहित
ज्ञान गंगा तुमसे प्रवाहित
करबद्ध हमचरणों में आए
विद्या का बस अधिकार दे मां
निज भक्ति का विश्वास दो
वरद हस्त का आभास दो
नित तेरा ही अर्चन करें
निर्मल यही उपहार दे मां
©प्रियंका
Monday, 3 February 2014
Sunday, 2 February 2014
दुआएं
कह दिया तुमने
कुछ दुआएं
मेरे लिए भी कर लो.......
कभी देख ही न पाए
सबसे पीछेभीड मे
कुछ फूल दुआओं के
हाथ में लिए मुझको......
मेरे शब्दों में
आंखों की नमी
महसूस ही नहीं की कभी
पास न होकर भी मैं
हमेशा शामिल हूं
तुम्हारी खुशियों में
तुम देख सको या नहीं
मगर
तुम्हारी
हर तकलीफ में भी
मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं
एक
एहसास बनकर
हर प्रार्थना मे
शामिल हो तुम
क्योंकि......
बहुत खास हो 'तुम'...
©प्रियंका
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