घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना
पापा से कहना स्वस्थ रहें
भइया का मार्ग सदा प्रशस्त रहे
भाभी का सौभाग्य अक्षत रहे
मुन्ने को आशीर्वचन तुम दे आना
मत कहना उनसे दर्द कोई
कहना मै तो रानी सी हुई
बस मेरी सारी खुशियों की
अच्छे से खबर तुम दे आना
बागों के उन झूलों की
बचपन के खेल खिलौनों की
उन बिछडी सारी सखियों की
खोज खबर तुम ले आना
माटी की सोंधी खुशबू लाना
मां पापा का सारा प्यार दुलार
कुछ बचपन की यादें लाना
आते आते फिर एक बार
भइया की कलाई भी छूकर आना
घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना..........
©प्रियंका
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना
पापा से कहना स्वस्थ रहें
भइया का मार्ग सदा प्रशस्त रहे
भाभी का सौभाग्य अक्षत रहे
मुन्ने को आशीर्वचन तुम दे आना
मत कहना उनसे दर्द कोई
कहना मै तो रानी सी हुई
बस मेरी सारी खुशियों की
अच्छे से खबर तुम दे आना
बागों के उन झूलों की
बचपन के खेल खिलौनों की
उन बिछडी सारी सखियों की
खोज खबर तुम ले आना
माटी की सोंधी खुशबू लाना
मां पापा का सारा प्यार दुलार
कुछ बचपन की यादें लाना
आते आते फिर एक बार
भइया की कलाई भी छूकर आना
घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना..........
©प्रियंका
मेरी एक रचना के ये हिस्से मायके की याद के सन्दर्भ में यहां सुसंगत है।
ReplyDeleteछत की मुण्डेर पर कौव्वे रोज देते हैं सन्देशे,
घर आंगन चौबारा खुली खिडकियां उदास है।।
जहां कूकती फिरती थी तुम सहेलियों के साथ,
गांव शहर के चौपाल चौराहे गलियां उदास है।।
वो मासूम किलकारियों के साथ उछलते फ़व्वारे,
सूखी दूब, टूटे गमले, कुन्द कलियां उदास है।।
बचपन में तुमने करवायी थी जिनकी शादियां,
आलमारी में बन्द वो गुडडा गुडिया उदास है।।
जिन्हें खिलाया करती थी अपने हाथ से दाना,
बिजली के तारों पे बैठी वो चिडिया उदास है।।
जिसकी गोद में बैठी सुना करती थी कहानियां,
चौबारे में बैठ बुलाती वहां ददिया उदास है।।
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उस दिन के कैलेण्डर का पन्ना भी नहीं बदला,
दीवार पे टंगी हुर्इ वो बन्द घडियां उदास है।।
लाल, पीली, हरी, शरबती बफऱ्ीले फूल के गोले,
स्कूल के पास उस रेहडी की कुलिफ़यां उदास है।।
अमचूर के चूरन की गोली, चुस्की, पोले पापड,
र्इनाम के पत्ते, नारंगी की टाफि़यां उदास है।।
तुम बिन ये दीवाली की चमक होली के रंग,
रोली टीका पताशा फीका मोली की राखियां उदास है।।
बेला चमेली के गजरों की कलियां कुम्हला गयी,
बिन्दी लाली काजल सुरमें की डिबिया उदास है।।
जहां कमला विमला सीता गीता साथ लगाती थी पेंग,
बौराये आमों के वो झूले वो डालियां उदास है।।
जिन्हें पहन तितली जैसे इतराती फिरती थी मेले में,
वो रेशमी फुन्दे पीतल के छल्ले बालियां उदास है।।
ज़मीर
हार्दिक आभार विशेष टिप्पड़ी हेतु सर
Deleteअति सुन्दर रचना।
ReplyDeleteइस गीत को यदि संगीत में ढाल दे।इसके मधुर स्वर आनंदायी हो जायेगे। आशा भोसले के एक गीत का स्मरण हो आता है।"मेरे भैया को संदेसा पहुचना की चन्दा तेरी ज्योत बड़े"