नारी मन ---
कर्तव्यों और सम्बन्धों का निर्वहन करते
जीवन पर्यंत झंझावातों का सामना करते
और प्रतिदिन अनगिनत हिसाब किताब करते हुए
उन पलों का सही सही आकलन कहां कर पाता है
जो उसने स्वयं के लिए जिए.........
अंतर्मन के कोमल नन्हें पंखों से
अनन्त आकाश की ऊंचाइयां नापने का एक प्रयास....
Monday, 3 February 2014
ज़िन्दगी
बहुत मायूस सा गुज़रता दिन बोझिल से रेंगते पल कुछ शिकायतें खुद से खुद की कुछ मायूसियां औरों से ज़िन्दगी के सुस्त पड़ते से कदम अचानक...
माँ कह कर लिपटते दो नन्हे हाथ कानो में गूंजती किलकारी सी और फिर चल पड़ी ज़िन्दगी अपनी नयी रफ़्तार से
वाह बहुत खूब।
ReplyDeleteअत्यंत ह्र्दयस्पर्शी !
ReplyDeleteअतुकांत विधा में : पंक्ती दर पंक्ती मर्म की चुम्बकीय शक्ती से प्रसार लेती अभिव्यक्ती !
बहुत ही भावपूर्ण... शुभकामनायें !
सादर
धन्यवाद् :)
Delete