मत उम्मीद रख जहां में लोगों से वफाओं की
सियासी फैसले दिलों के जाने कितने मोड लेते हैं
नवाकिफ भी नहीं लोग रंजोगम से किसी के
पलकों के पर्दे में बस आंसू बेसहारा छोड देते हैं
सितारा हो जब तलक चमकोगे उनकी निगाहों में
फीकी चमक वालों से सुना है वो नाता तोड लेते हैं
मुखौटे ही मुखौटे हैं जहां में अजब ये दौर है देखो
सादगी को भी साजिश में चालों से जोड देते है
दूरियां बढती गईं फासले बस दो कदम ही थे
सच को बिना जाने अब लोग रिश्ते तोड देते हैं
पत्थरों की तानाशाही में घुट-घुट के हैं मर जाते
आइने थक हार कर आइना बनना छोड देते हैं
------प्रियंका
Sach kaha hai.. yehi daur-e-hujum hai..!
ReplyDeletethnx Abhilekh ji
Deleteबहुत सुन्दर है अर्थ और भाव दोनों :
ReplyDeleteमत उम्मीद रख जहां में लोगों से वफाओं की
मत उम्मीद रख जहां में लोगों से वफाओं की
सियासी फैसले दिलों के जाने कितने मोड लेते हैं
नवाकिफ भी नहीं लोग रंजोगम से किसी के
पलकों के पर्दे में बस आंसू बेसहारा छोड देते हैं
सितारा हो जब तलक चमकोगे उनकी निगाहों में
फीकी चमक वालों से सुना है वो नाता तोड लेते हैं
मुखौटे ही मुखौटे हैं जहां में अजब ये दौर है देखो
सादगी को भी साजिश में चालों से जोड देते है
दूरियां बढती गईं फासले बस दो कदम ही थे
सच को बिना जाने अब लोग रिश्ते तोड देते हैं
पत्थरों की तानाशाही में घुट-घुट के हैं मर जाते
आइने थक हार कर आइना बनना छोड देते हैं
------प्रियंका
आभार वीरेंद्र जी
Deleteआभार अभिषेक
ReplyDeleteअतिसुन्दर
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