सुप्त तारों को अकस्मात झंकृत सा कर गया
सुषुप्त से हृदय में मधुर गुंजना सी कर गया
गूंजती है जीवन के लय में एक मधुर झंकार सी
खो स्वयं को भी मिली एक मधुर प्यारी पीर सी
पाकर जिसे सम्मुख मुखर सा हो जाता है मौन
हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन
वसंत से छाए हो तुम घनसार सुरभित जीवन हुआ
अनगिनत नव पुष्प खिलते मन मेरा उपवन हुआ
झूम गर्वित मेघ सम आए परितृप्त जीवन हो गया
मेघमय अनुराग से अभिसिंचित सा ये मन हो गया
नयन के सूने निलय में स्वप्न का चितेरा है कौन
हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन
कौन बोझिल से मन में बन मधुर मुस्कान रहता
कौन प्यासे नयन में बन कभी बादल सा झरता
प्राप्त क्या हो सका मुझे पीड़ा के अनोखे से क्रय में
चिर तृप्त सा जीवन हुआ अकस्मात् ही एक क्षण में
अनजान से कुछ बन्धनों में बंदी सा कर गया ये कौन
मेरे हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन.........
©प्रियंका
प्रभावित करती रचना ...
ReplyDeleteTHNX SANJAY JI
Deleteदिल को छूती बेहतरीन रचना... प्यारे शब्द !!
ReplyDeleteTHNX Mukesh ji
Deletethnx CANDAN PRAMANIK :)
ReplyDeleteBahut sunder rachana mam, wah ,
ReplyDeletethnx Ravi ji
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