Saturday 8 February 2014

सामंजस्य

यंत्रवत चलते दौडते भागते...
संसार की गतिशीलता से सामंजस्य बिठाती है...
सभी की इच्छा अनिच्छा आवश्यकताओं को
पूरा करते मुस्कुराती है....


परिस्थितियों से संघर्ष करते थककर शिशुओं के कलरव में
सब भूल जाती है....
जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते हुए..
संघर्ष करती जाती है......

परन्तु दिन ढल जाने पर घर के काम काज
और बजट का हिसाब लगाते हुए
उन पलों का सही सही हिसाब कहॉ लगा पाती है
जो उसने अपने लिए जिए............


©प्रियंका

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