Monday 10 February 2014

कुछ एहसास


कुछ एहसास
भेजे थे तुमको.....
लौटे तो
बडे मायूस से लगे

बहुत देखा
कहीं भी न मिले
निशान
तेरे छूने के........
पर..........

हर सफहा
बडा नम सा लगा
शायद
साथ लाए थे

तेरी आंखों की नमी
जो तूने
छिपा रखी थी
मुझसे.........

©प्रियंका

अपरिचित कौन


सुप्त तारों को अकस्मात झंकृत सा कर गया
सुषुप्त से हृदय में मधुर गुंजना सी कर गया
गूंजती है जीवन के लय में एक मधुर झंकार सी
खो स्वयं को भी मिली एक मधुर प्यारी पीर सी
पाकर जिसे सम्मुख मुखर सा हो जाता है मौन
हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन

वसंत से छाए हो तुम घनसार सुरभित जीवन हुआ
अनगिनत नव पुष्प खिलते मन मेरा उपवन हुआ
झूम गर्वित मेघ सम आए परितृप्त जीवन हो गया
मेघमय अनुराग से अभिसिंचित सा ये मन हो गया
नयन के सूने निलय में स्वप्न का चितेरा है कौन
हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन      

कौन बोझिल से मन में बन मधुर मुस्कान रहता
कौन प्यासे नयन में बन कभी बादल सा झरता
प्राप्त क्या हो सका मुझे पीड़ा के अनोखे से क्रय में
चिर तृप्त सा जीवन हुआ अकस्मात् ही एक क्षण में
अनजान से कुछ बन्धनों में बंदी सा कर गया ये कौन
मेरे हृदय की मधुर अनुभूतियों में तुम अपरिचित कौन.........

©प्रियंका

Saturday 8 February 2014

एक दिन

कितनी दुआएं मांगी थीं
साथ तेरा इक पाने को
तेरी जिद के आगे नहीं पता था
कभी खुदा भी बेबस होगा

खुश लम्हों में कब सोचा था
अब एसे दिन भी आएंगे
इन चमकीली आंखों का भी
भीगा भीगा मौसम होगा

एक हंसी सुनने की खातिर
रहता था बेताब जो दिल
कहां खबर थी उसकी ही खातिर
दिल का मौसम पुरनम होगा

कब चाहा था कब सोचा था
तुम भी दूर चले जाओगे
खुशियों की धूप चली जाएगी
छाया गम का बादल होगा

यादें संग मेरे छोड के जाना
बोझ नहीं सह पाओगे
आगे तेरे खुशसफर में
न मेरी प्रीत का बंधन होगा


©प्रियंका

तुम्हारा मौन

बस खुशबू है कुछ बातों की
पूंजी है उन सौगातों की
जब भी मिलते हो मुझसे तुम
कुछ न कह कर भी 


सबकुछ तो कह जाता है
सिर्फ तुम्हारा मौन
कहने सुनने की बात नहीं
कैसे कह दूं तुम साथ नहीं


दुख के घने अंधेरे में
जब कोई साथ न देता है
चुपके से मुझको
एक दिलासा सा दे जाता है

सिर्फ तुम्हारा मौन....

©प्रियंका

पुरानी आलमारी


अलमारी के इक कोने में
आज भी तेरी सौगातें हैं
मेरे कुछ ज़ज्बात हैं उनमें
कितनी प्यारी बातें हैं

कुछ प्यारे बीते मायूस से लम्हे
नम आँखों से मुझको देखें
चुप रहते कुछ भी न कहते
फिर भी जाने क्या क्या कहते

कुछ दीवारों पर चस्पा यादें
कुछ खुशबू बीती बातों की
सब यादें आज भी ताज़ा हैं
उन सारी सौगातों की

डायरी के मायूस से पन्ने
गुलाब के सूखे फूल सभी
कभी खिलखिलाते थे ये पन्ने
ताज़ा थे सारे फूल कभी

हाँ इतना तो मालूम है मुझको
इतनी खबर मुझको भी है
वक़्त की धुल तले दब कर
पन्ने बस दफन हुआ करते हैं

सूखे फूल किताबों में
ताज़ा नहीं हुआ करते हैं
नाउम्मीदी में भी जाने क्यों
इक उम्मीद में साँसें हैं

अलमारी के इक कोने में
आज भी तेरी सौगातें हैं
मेरे कुछ ज़ज्बात हैं उनमें
कितनी प्यारी बातें हैं

©प्रियंका

उदास पेड़


एक घना पेड़ अपने पंछियों को देख जब इतराया....
घने पत्तों पर कुछ घमंड से थोडा और लहराया....!!!


पास एक सूखा शज़र नींद से ज्यों जग बैठा...
एक ठंडी से आह मानों अचानक वो ले बैठा...!!!

पेड़ बोला अपने पुराने दिन तुम याद करते हो...
मेरी खुशियों पर तुम क्यों आहें सी भरते हो...!!!

ठूंठ बोला तेरी खुशियों पर नहीं मैं उदास हो रहा हूँ...
अपनी जगह मैं आते कल में तुमको खड़े देख रहा हूँ...!!!


©प्रियंका

अधूरी धूप

आज कल बहुत सर्द सा हो चला है
मौसम ज़िन्दगी का जाने क्यूँ
हमेशा खिलखिलाती थी यूँ ही
वो धूप लौट कर आती ही नहीं

वक़्त के साथ कहाँ गुम हो गयीं
मुस्कुराहटें रूठ सी गयीं हमसे
छिपाते फिरते हैं लोगों से
आँखों की नमी है की जाती ही नहीं

सुना था वक़्त तो यूँ ही उड़ जाता है
पर ठहरा क्यूँ है मेरे कमरे में
जाने क्यूँ घडी की सुइयां
आगे का वक़्त बताती ही नहीं

तुम...तो अपने थे और बेहद अपने
पर ज़माने से बहुत तेज़ चले
जाने क्यूँ एक ये खलिश
दिल से कभी जाती ही नहीं

©प्रियंका

सामंजस्य

यंत्रवत चलते दौडते भागते...
संसार की गतिशीलता से सामंजस्य बिठाती है...
सभी की इच्छा अनिच्छा आवश्यकताओं को
पूरा करते मुस्कुराती है....


परिस्थितियों से संघर्ष करते थककर शिशुओं के कलरव में
सब भूल जाती है....
जीवन में सुख दुख के झंझावातों से तारतम्य बिठाते हुए..
संघर्ष करती जाती है......

परन्तु दिन ढल जाने पर घर के काम काज
और बजट का हिसाब लगाते हुए
उन पलों का सही सही हिसाब कहॉ लगा पाती है
जो उसने अपने लिए जिए............


©प्रियंका

Wednesday 5 February 2014

तुम आओगे ना


सुनो तुम्हें याद है ना
वो खुशगवार मौसम
सपनों की सतरंगी धूप
कुछ मुस्कुराहटो की कलियाँ


हमारी हंसी,खिलखिलाहटों के
कुछ सफ़ेद झरते फूल
मेरा बस मुग्ध होकर
तुम्हें उनको चुनते देखना

मगर आज सर्द मौसम में
कहीं छुप सा गया है सूरज
उदास से ये फूल अक्सर पूछते हैं
कब बदलेगा मौसम
और निखरेगी खुशगवार बन कर फिजा
कुछ तो ज़वाब दो

अपने पसंद के फूलों को चुनने
तुम आओगे ना...
बोलो......................


©प्रियंका

परिवर्तन


चेहरों के सच दिखते थे
मन के उन आइनों में
ना तो वो चेहरे ही रहे अब
ना आईने ही पहले से
सब कुछ तो परिवर्तित होता
समय बदलते देर कहाँ लगती है

वो फूल और तितली का साथ
जैसे कल की ही हो बात
खुशियों में बस हँसते रहना
भर आये जब तक न आँख
कल के अपने आज गैर से
संवेदन बदलते देर कहाँ लगती है

जीवन के इस रंगमंच पर
कितने नाटक अभिनीत हुए
पृथक हो गए पात्र सभी
संवाद सभी विस्मृत से हुए
अंत सदा ना सुखान्त हुए
हृदय बदलते देर कहाँ लगती है

©प्रियंका

सुनो मेघ

घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना

पापा से कहना स्वस्थ रहें
भइया का मार्ग सदा प्रशस्त रहे
भाभी का सौभाग्य अक्षत रहे
मुन्ने को आशीर्वचन तुम दे आना 

मत कहना उनसे दर्द कोई
कहना मै तो रानी सी हुई
बस मेरी सारी खुशियों की
अच्छे से खबर तुम दे आना

बागों के उन झूलों की
बचपन के खेल खिलौनों की
उन बिछडी सारी सखियों की
खोज खबर तुम ले आना

माटी की सोंधी खुशबू लाना
मां पापा का सारा प्यार दुलार
कुछ बचपन की यादें लाना
आते आते फिर एक बार 

भइया की कलाई भी छूकर आना
घन मेघ सांवरे उड कर तुम
बाबा की नगरी भी जाना
संग अपने तुम थोडा सा
इन आंखों का पानी भी ले जाना..........

©प्रियंका

यूँ ही कभी

यूँ ही कभी
वक़्त के खजाने से
निकल कर
बिखर गए थे
कुछ मोती......

बड़े खूबसूरत
और दिलकश
मगर आज
खोजने से भी
नहीं मिलते
कही उनके निशाँ
बस.....

खामोशियों
की कब्र में
दफ़न हैं
कुछ दास्तानें
बीते लम्हात की....

©प्रियंका

Tuesday 4 February 2014

सरस्वती वंदन


श्वेतवर्णी हंसवाहिनी
वीणावादिनी शारदे मां
अज्ञानता के घन हटाकर
ज्ञान का उपहार दे मां

रिक्त अकिंचन शरण आए
बुद्धि दे व्यवहार दे मां
सहज संसृति की धार दे दे
अभय दे निज प्यार दे मां

सप्त स्वर तुममें समाहित
ज्ञान गंगा तुमसे प्रवाहित
करबद्ध हमचरणों में आए
विद्या का बस अधिकार दे मां

निज भक्ति का विश्वास दो
वरद हस्त का आभास दो
नित तेरा ही अर्चन करें
निर्मल यही उपहार दे मां

©प्रियंका

Monday 3 February 2014

ज़िन्दगी


बहुत मायूस सा
गुज़रता दिन
बोझिल से
रेंगते पल
कुछ शिकायतें
खुद से खुद की
कुछ मायूसियां
औरों से
ज़िन्दगी के
सुस्त पड़ते
से कदम
अचानक...


माँ कह कर
लिपटते दो
नन्हे हाथ
कानो में गूंजती
किलकारी सी
और फिर
चल पड़ी
ज़िन्दगी
अपनी नयी
रफ़्तार से


©प्रियंका

Sunday 2 February 2014

दुआएं


कितनी आसानी से
कह दिया तुमने
कुछ दुआएं
मेरे लिए भी कर लो.......


कभी देख ही न पाए
सबसे पीछेभीड मे
कुछ फूल दुआओं के
हाथ में लिए मुझको......


मेरे शब्दों में
आंखों की नमी
महसूस ही नहीं की कभी

पास न होकर भी मैं
हमेशा शामिल हूं

तुम्हारी खुशियों में
तुम देख सको या नहीं

मगर
तुम्हारी
हर तकलीफ में भी
मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं


एक
एहसास बनकर
हर प्रार्थना मे
शामिल हो तुम
क्योंकि......
बहुत खास हो 'तुम'...


©प्रियंका