Sunday 1 March 2015

जब भक्त रूठा

श्रद्धा सुमन कुछ मन में लिए
कुछ दीप आस्था के लिए
कुछ हाथ सम्मुख तुम्हारे जुडे
कुछ शीश चरणों में झुके
प्रबल डोर भक्ति की है
संबल तुम्हारी शक्ति की है
हर घडी तुम्हारा साथ है
शीश पर तुम्हारा हाथ है
विश्वास नहीं तोडना प्रभु
भंवर में मत छोडना प्रभु
सूखे पुष्प फिर न खिलेंगे
बुझे दीप फिर न जलेंगे
धागा अगर आस्था का टूटा
कैसे मनाओगे भगवान जब भक्त रूठा
............प्रियंका


भाव धवल और खुला गगन है
लेकर स्वप्न पंख उडती जाऊं।
अमर प्रेम की प्रबल प्रीत संग
नवगीत नए नित रचती जाऊं।।
तेरे प्रेम की पावन सरिता
समरस अंतस में बहती जाए।
पथ चाहे कितना ही दुर्गम हो
कठिनाई बस हल होती जाए।
अनंत प्रेम से संबल लेकर
उत्तंग शिखर नित छूती जाऊं।
अमर ..................................
कुंज कुसुम सी चहुं ओर खिलूं
इक मोहक खुश्बू सी भर जाऊं।
अंधियारे सारे बिसरा कर
नित नया उजाला मैं ले आऊं।
स्वप्न वीथियों से बाहर निकलूं
नवल विहान नित रचती जाऊं।
अमर..................................
-------प्रियंका

भरोसा है खुद पर

मन छूना चाहता है आकाश
भरता है उड़ान
बाधाए काल गति की
कब रोक पायी हैं
रफ़्तार हौसलों की
पंखों तुमको इज़ाज़त नहीं
रुकने की
तय करना है
अंतहीन सफ़र
पानी हैं मंजिलें
और मुझे भरोसा है
पंखों से ज्यादा
खुद पर...........
----प्रियंका
बदलती है तारीख़ें
दिन महीने साल
तलाश में चंद खुशियों की
हम भटकते हैं रोज़
पर जाने क्यों
रह जाता है बहुत कुछ
वैसा ही
बदल नहीं सकते सब कुछ
पर आओ देखें
थोडा सा बदल कर
खुद को ही
---प्रियंका

माँ गुज़र गयी

माँ गुज़र गयी
सब सुनती रही
समझती रही
हंसती रही
लगाती रही अंगूठा 
सादे कागज़ पे
फिर भी
देती रही मन भर आशीष
छोड़ गयी विरासत
कुछ पुराने बरतन
सहेज कर रखे
कुछ पुराने सिक्के
डाक्टर की दवाई और पर्चे
दिन का सूनापन
रातो का डर
और
विरासत की खोज में
चमकती आँखों में
कुछ पश्चाताप के आंसू
------प्रियंका गुज़र गयी
सब सुनती रही
समझती रही
हंसती रही
लगाती रही अंगूठा 
सादे कागज़ पे
फिर भी
देती रही मन भर आशीष
छोड़ गयी विरासत
कुछ पुराने बरतन
सहेज कर रखे
कुछ पुराने सिक्के
डाक्टर की दवाई और पर्चे
दिन का सूनापन
रातो का डर
और
विरासत की खोज में
चमकती आँखों में
कुछ पश्चाताप के आंसू
------प्रियंका

सागर

सागर.....
समेट लेता है
कही अनकही
खट्टी मीठी
सारी शिकायतों
के पुलिंदे
मन की
लहरे छुपाये
सहेजता है
कुछ पुरानी यादें
चंचल नदी
दे जाती है
तमाम उलाहने
और
फिर फिर
---प्रियंका

ओम साईं राम

हे बाबा मेरे साईं तुम
मेरा भी वंदन ले लेना
श्रद्धा के अर्पित फूल प्रभु
भावों का चन्दन ले लेना
है ज्ञान नहीं अज्ञान सही
तुम अज्ञानी ही रहने दो
वेदों छंदों की माया तज
भावों की सरिता बहने दो
मन दर्पण को पावन कर दो
सारे भव बंधन ले लेना
श्रद्धा के अर्पित फूल प्रभु
भावों का चन्दन ले लेना
हीरे मोती और मंदिर की
तुमको कब कोई चाह रही
निर्विकार औ निस्पृह हो
भक्ति की केवल राह रही
मत रहना तुम देवालय में
मन का अभिनन्दन ले लेना
श्रद्धा के अर्पित फूल प्रभु
भावों का चन्दन ले लेना
-----प्रियंका

मन

पंछी
यूँ ही नहीं उड़ चलते
भर लेते है
जीवनी शक्ति
हवा फेफड़ों में
देते है पंखों को
नवप्राण उत्साह
मंजिल की तलाश में
भटकता मन
आओ उसे दें जीवन
आत्मशक्ति
छूने दें मंजिलें
उतार कर विचारों का बोझ
कर दें भारमुक्त
----प्रियंका
जाने क्यों कभी कभी उलझे से सांझ सवेरे रहते है।
कुछ न कह कर भी जाने क्या ये चुपके से कहते हैं।
कुछ जानी सी कुछ अनजानी कितनी बातें मन में रखते।
पर दुःख की सब तरंग लेकर इक सरगम से बहते हैं।

मैंने तुमको फूलों में खोजा तुम कहीं हवाओं में महके
सारी दुनिया में खोजा जाकर तुम बंद आँखों में थे रहते
खुली आँख तो संग सपनों आँखों से क्यों बह जाते
छिपा लूँ सोचा हाथों में पर आंसू भी कब तक मेरे रहते


अग्रसर हो उन्नति पथ पर जगत में सम्मान हो
संचित पड़ी जो सुप्त शक्ति विश्व को संज्ञान हो
नित नवल पथ पर बढ़ चलें कीर्ति ध्वज फहरे सदा
बन सूर्य चमको विश्व में हर ह्रदय में सम्मान हो
-----प्रियंका

जय माता दी

संकटतारिणि भवभयहारिणि दुःख निवारिणि जय माते
कष्ट निवारिणि कलिमल तारिणि पाप निवारिणि जय माते
खप्पर धारिणि दुष्ट संहारिणि सेवक तारिणि जय माते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि शुम्भ विदारिणि जय माते
शतरविलज्जित कुंकुमसज्जित मुखकमल निहारूं जय माते
झन झन झिंझिम झंकृत नुपुर पदकमल पखारूँ जय माते
कलिमलकल्मष कष्ट कलंक कुविचार कुसंग निवारुं जय माते
जय जय हे महिषासुर मर्दिनि शुम्भ वीदारिणी जय माते -----प्रियंका

वजहें मुस्कुराने की

दिन भर की भाग दौड़
झूठी मुस्कराहट
दिखावे के हौसलो
के बाद भी
शाम के धुंधलके
रात की खामोशी
सितारों की टिमटिम
सुबह की नर्म धूप
ताज़े मुस्काते फूलो
ओस की बूंदों
और
मोबाइल की एक बीप
कहीं न कही
मिल ही जाती है
वजहें मुस्कुराने की
-----प्रियंका

ज़िन्दगी

हकीकत है या फ़क़त ख्वाब है सुनहरी ज़िन्दगी
जाने किस मोड़ पर अब आके है ठहरी ज़िन्दगी
कभी हो जाते हैं सारे सुर अपने ही बेगाने से
कभी खुशरंग सी है कोई स्वरलहरी ज़िन्दगी
कोई ज़ज्बा कोई हकीक़त या कोई मज़ाक सही
दिल के गोशों में इक ज़ब्त बात है गहरी ज़िन्दगी
मिल जाते है नर्म साए राहों में अक्सर यूँ ही
वरना सहरा में तपती कोई है दुपहरी ज़िन्दगी
-----प्रियंका

माँ तुम याद बहुत आती हो

वक़्त की कडी धूप में साए सी मिल जाती हो
ऊदासियो में कभी ख़ुशी बन के खिल जाती हो
हर उलझन का हल तुमसे ही पाया हरपल
बन दुआ रहती हो संग मेरे तुम पलपल
जब भी चाहूँ सितारों में नज़र आती हो
माँ कैसे बताऊँ तुम याद बहुत आती हो
कोई अजीब सी जिद तू ही बता किससे करूँ
थका हो मन तो सर मैं अब किस गोद धरुं
फिर तेरी साड़ियों की नर्मी में तुम्हे छू लूँ मैंं
वक़्त दे मोहलत तो कुछ और साथ जी लूँ मै
बुरे वक़्त में बन के साया सा छा जाती हो
माँ कैसे बताऊ तुम्हे तुम याद बहुत आती हो।ं
ू ------प्रियंका
दे जाते थे हौसले तेरे चंद अलफ़ाज़ अक्सर यूँ ही
खामोशियाँ आज बेसबब शोर करती हैं
सितारे आँखों के बीते मौसम की बात हुए
यादें आ आ के नम आँखों के कोर करती हैं
कट जाते थे दिन और रात चंद लम्हों में
आज जगती आँखे रो रो के भोर करती है
कब टूटते हैं मरासिम दूरियों के पैमानों से
करीबी दिल की पक्के रिश्तों की डोर करती है
----प्रियंका

मुुुक्तक

छलनाएं फैलीं हैं चहुँ दिश जीवन के इन विस्तारों में
मोल कहाँ लगता स्नेहों का स्वारथ के इन व्यापारों में
निश्छल मन के पावन बंधन टूट टूट के बिखर रहे हैं
रीते हाथ लिए फिरते सब संबंधों के इन बाज़ारों में

अहसास बस ख्यालों में जाने कब उतर जाते हैं
कुछ हमख्याल ख्यालों से ही और करीब आते है
जुड जाते है नाते गमों और खुशियों से अनजाने में
दोस्त जब हमख्याल बन ख्यालों में मुस्कुराते हैं

बूंदों से झिलमिल हैं अंखियों के कोर
सुन्न चुप्पियों में एक अस्फुट सा शोर
सीली संवेदना के कुछ सुलगते है तंतु
बावरे नयन खोजे टूटे सपनो के छोर

तुझमे ही शामिल हूँ पहचान ले यारब मुझको
नफरतों में ही सही तेरे वजूद का हिस्सा हूँ मैं
भुला सका न तमाम कोशिशों में भी तू जिसको
तेरे अहसासात ख़यालात का वो किस्सा हूँ मैं

आ ए ज़िन्दगी फिर रुला दे बेसबब मुझको
बहूत दिनों से इन आँखों की नमी गायब है
तू भी तो मजबूर है चंद लकीरों के आगे
तेरा भी फ़र्ज़ निभाना अपना बड़ा जायज़ है

निर्धारित जब सृजन सर्वदा पाप पुन्य का बंधन कैसा
सत्य सर्वथा जीवन होता स्वप्नों का मिथ्या क्रंदन कैसा
कण कण में रहता बसता वो सभी मधुर मुस्कानों में
भर नयनों में अश्रु किसी के मंदिर में पूजन अर्चन कैसा


जोत जगे मन भीतर यों बस प्रेम बढे सुख हो अधिकाई
स्वागत द्वारन ठाढि रहे नयना जगते नहि नींद समाई
आस धरे तकते पथ मात रमा कब आय करे पहुनाई
चौक धरे शत दीप जला रख देख रही तुमरी प्रभुताई
-----प्रियंका



तिमिर त्याग आलोकित रजनी
दीप ज्योत की बांध पैजनी
अमा निशा प्रमुदित हो हुलसे
जैसे मिलन को आतुर सजनी
-----प्रियंका




प्रकाश के नन्हे प्रहरी

ए प्रकाश के नन्हे नन्हे प्रहरी
तुम भू मंडल पर छा जाओ
आलोकित कर दसों दिशायें
गहन तिमिर को हर जाओ
ज्योतिरूप ये पंख रुपहले
धन सुख भर दें हर आँगन
नित प्रेम बढे दुःख बैर मिटे
हो स्वर्ग सरीखा जग पावन
सजल नयन की छीन आद्रता
अधरों पर स्मित दे जाओ
भ्रमजाल मिटा अवसादों के
आशा की किरणें दे जाओ
ज्योतिपर्व की जोत अलौकिक
अवनि पर अमृत बरसाए
निज कर्मलीन हर प्राणी हो
प्रमुदित होकर हर मन गाये
द्वेष भाव का अन्धकार हर
नित प्रेम उजाला दे जाओ
मन से मन का दीप जलाकर
हर दामन खुशियाँ भर जाओ
आलोकित हों दसों दिशायें
गहन तिमिर को हर जाओ
ओ प्रकाश के नन्हे नन्हे प्रहरी
तुम भूमंडल पर छा जाओ
-----प्रियंका

शाम

कतरा कतरा ही ढल रही थी शाम
नर्म अह्साहो में पिघल रही थी शाम
हर्फ़ हर्फ़ महका था गुलों की मानिंद
बन के खुशबू दिलों में उतर रही थी शाम
वो तू था तेरा एहसास या जाने क्या था
मन ही मन शर्माती संवर सी रही थी शाम
बाद जाने के तेरे रही खोजती अपना ही पता
मंजिलें तलाशती ताउम्र सफ़र सी रही थी शाम
पाल के आरजू कोई हसरतों में थी शायद
इंतज़ार में हर घडी बिखर सी रही थी शाम।
-----प्रियंका
फिसल ही जाती है
हाथ में आते आते
खुशियाँ अक्सर यूँ ही
दहशत में हूँ
बड़ी देर तलक 
ठहरी थी किसी रोज़
मुस्कुराहटें दर पर मेरे
------प्रियंका

ज़िन्दगी

यही है ज़िन्दगी.....
उम्मीद की पतली सी लकीर
घने बादल के बीच से मुस्कुराती
छोटी सी किरण
निराशा को मुंह चिढाती
छोटी सी आशा
कुछ सपने,कुछ उम्मीदें
और.....
रफ़्तार ज़िन्दगी की
-----प्रियंका

मेरे दिन.......

अनवरत आवागमन
उगना ठहरना बीतना
जलते बुझते रंग बिखेरते
गुजरती है सृष्टि तुमसे
पर मैं शापग्रस्त शिला सी
जब भी हाथ बढाए
तुम पराये ही मिले
खटखटाई है सांकल
कभी धीमे कभी व्यग्रता से
कभी आशा कभी निराशा से
पर
चल दिए तुम मुह फेर
अस्वीकार कर के
अंकुरित पल्लवित उद्भाभासित
इन्द्रधनुषी फुहार से
जो किसी का कर्जदार न हो
क्या बस एक बार
तुम उगोगे सिर्फ मेरे लिए
ए दिन..................!!!!!
----प्रियंका

अलसाई पांखी सी आँखें कितने सपने चुन लाती है

गीत -----
कुछ मोहक से सपन पंख ले
दूर गगन तक फिर आती है
अलसाई पांखी सी आँखें
कितने सपने चुन लाती है
नरम चांदनी कभी पिघल कर
मन के भीतर रचबस जाए
कुछ सोयी जागी आँखों में
जब भी कोई अपना आये
मन भीतर भी यूँ सहसा ही
कितनी खुशबू भर जाती है
अलसाई पांखी सी......
नयनों के झूठे सपनों को
बस हौले से तुम छू लेना
होंगे तेरे सारे अपने
बस तुम मेरे ही हो लेना
बोलती आँखे जाने कब क्या
इक दूजे से सुन जाती है
अलसाई पांखी सी.........
-----प्रियंका

यादें

रोज़ ही आता है सूरज
लौट जाता है
चहल कदमी कर के
साँझ जोहती है बाट 
पहरों पहर
वक़्त सिखा देता है
तमाम क़ायदे ख़ुद ही
कोई तो सिखा दो
यादों को भी
लौटने का हुनर........
-----प्रियंका

प्रेम

प्रेम....
कहाँ परिभाषित था
मौन में सिमटा सकुचाया सा
बंध जाता है अनायास ही
जिंदगी के पेड़ पर
एक मन्नत का धागा
साँसों की डोर से
चाह कर भी खुल कहाँ पाता
कहते है अँधा होता है प्रेम
मिल जाता है
फूलों की खुशबू में
हवाओं की सरगम में
ओस की नमी में
अचानक ही
सोच समझ कर तो
साजिशें हुआ करती हैं.......
-----प्रियंका

अहसास

अहसास बस ख्यालों में जाने कब उतर जाते हैं
कुछ हमख्याल ख्यालों से ही और करीब आते है
जुड जाते है नाते गमों और खुशियों से अनजाने में
दोस्त जब हमख्याल बन ख्यालों में मुस्कुराते हैं
------प्रियंका

मौन

मौन
स्पंदित है शिराओं में
शब्द 
भावनाओं की सीप में
मोती से
रोज़ ही गढ़ लेते हैं
नया आकार
पर रुक से गए हैं
आज
मन की गलियों से
गुज़रते
गीले हो जाने के डर से
------प्रियंका
डाली पर बैटा पीला चांद
जुगनुओं की कतार
रात का सितारों जडा
लहराता आंचल
बंद दरवाजे
खामोश दीवारें
फैली है एक अजीब सी चुप
चारों ओर
अब तलक गूंजती है
छन की आवाज........
शायद
एक ख्वाब टूटा है कहीं..............
-----प्रियंका

जिंदगी........ उम्मीदों के खुशनुमा फरेब सी

संदर्भों को खोजते संवाद
बोझिल मन के अवसाद
कहीं तो कुछ रह गया है सिमट के
घडी की सुईयों से बंधा
घंटों और दिनों का इंतजार
जिंदगी........
उम्मीदों के खुशनुमा फरेब सी.............!!!!!!!!
-------प्रियंका

यादें

अपने रिश्ते की तरह
सर्द पड़ी
किसी शाम में
जला दी थीं
कुछ बेचैनियां
लकड़ियों की शक्ल में
यादें उमड़ती रहीं
धुएं सी दिल में
बहुत देर तलक
बेपरदा कर गईँ
तमाम
पोशीदा जज़्बात मेरे
आँखों की नमी
पैरहन थी
उनकी शायद........
-----प्रियंका

बात और जज़्बात

बात इतनी सी है कि कोई बात नहीं
लफ्ज़ बिखरे है मगर अलफ़ाज़ नहीं
वहीँ तू है वहीँ मैं हूँ वहीँ रिश्ते हैं सभी
मगर जाने क्यूँ पहले से वो हालात नही
अख्तियार कर ले खामोशी तूभी मेरी तरह
जिनके ज़वाब हो ऐसे ये सवालात नही
दिल के गोशों में दफ़न होके हमेशा रह लेंगे
ख्वाहिशें रखते हों ऐसे ये जज़्बात नहीं
-----प्रियंका ं

जिंदगी..... एक खूबसूरत फरेब सी

बहुत संजीदा से गलियारों से भी
खोज ही लिया करती है
कुछ आसान सी राहें
छूटती घुटती सी सांसों को देकर धोखा
कुछ नर्म हवाएं
जीने के लिए
उधडते रिश्तों पर हर रोज
नया पैबंद सिए जाती है
खुश है कम्बख्त
बंद आंखों से सच मान
कुछ झूठ जिए जाती है
जिंदगी.................
बस एक खूबसूरत फरेब सी..............................
------प्रियंका
कुछ आहटें कुछ खामोशियां
बहते बदलों सी उम्मीदें इंतजार में
बरस गईं जाने कब..
जिंदगी सरकती रही चांद की लुकाछिपी में 
रात की मानिंद
पांव थक गए पर सफर यूं ही
मुसलसल गुजरता ही रहा
थकने सा लगा है अब तो
ये रास्ता भी जाने क्यूं
शायद रूह बदल रही रास्ते अपने......
नींद से कडुआई पलकों पर
कुछ ख्वाब पूछ ही बैठे हैं..
किस तलाश में है तू............
जिंदगी................
-------प्रियंका

मसरूफ़ तुम

कहना तो था बहुत कुछ
मगर तमाम अल्फाज़ो की भीड़
कुछ दायरे और तुम्हारी मसरूफियत
रोक ही लेती है हर वक्त
कुछ कहने से
बस यूँ ही कहीं भी
ओस के किसी सूखे क़तरे
अलस्सुबह धूप की नमी
आवाज़ों की चुप या
सन्नाटों के शोरगुल में
मिल ही जाया करते हो कहीं
कोहरे में छिपता चाँद
मैं और तुम सच ही हैं सब
अल्फाज़ो की धुंध हटा कर
समेट लेना चाँद आँखों में
बहुत ज़रूरी होता है
जीने की कोई वजह होना
इतनी नाकाफी भी नहीं ये वज़हें
धुंधला चाँद
सिर्फ दो लफ्ज़
अल्फाज़ो के सहेजे तमाम
मायूस पुलिंदे
और एक अहसास से
बेहद मसरूफ़ कही पर तुम..............
-----प्रियंका


अक्सर
खामोश हो जाया करती हैं
यूँ ही बेलौस बहते बहते
या बैठ जाया करती है
अख्तियार कर
एक चुप सी
गिर्द फूलों के
देखते एकटक
मानों सहेज लेना हो हर कतरा
उन लम्हों का
जो अख्तियार में नहीं
मिल गए हो अचानक ही
घुटन सी होती है
शायद
खुशबुओं का दम घुटता है
भीड़ में तितलियों की
-----प्रियंका े

दो आवाज़

वो जो दी थी गिन के तुमने
कुछ सांसों की मियाद
शक्ल में लम्हों की
खर्च हो चली
बड़ी सर्द सी पड़ी हैं
शामें कुछ
रोज़ ही छू कर देखा है
गुज़रते बर्फ से लम्हों को
जाने क्यों कागज़ पर
लफ़्ज़ों के उभरते अक्स में
हरक़त ही नहीं होती
दो आवाज़ कि कहीं कोई
जुम्बिश तो हो
सुना है
एहसास की तपिश से
बर्फ पिघल जाया करती है........
------प्रियंका

ज़िद

कोई ज़िद कोई जुनून
या तमन्ना हो इक शिद्दत से
आ ही जाती है
कुछ नटखट किरणे
आँख बचाकर
मुँह चिढ़ाती हुई
छन कर कहीं न कहीं से
अक्सर यूँ ही
बावज़ूद तमाम बंदिशों की
सूरज के.......
-----प्रियंका

ख्वाहिशे

तमाम बंदिशें
चिढ या ताकीद से
या पाबन्दी
कलाई पर बंधे वक़्त की हो
बड़ी उलझन में थीं
समझ के भी
नासमझ सी
मासूम थी वो
बड़ी मायूसी से
दम तोड़ गयी
कुछ ख्वाहिशे पगली....
----प्रियंका

हम औऱ तुम

सच तमाम जो आँखों से दीखते हैं
और वो झूठ जो पोशीदा हैं
उनके बीच की खाली जगहों में कही
हम मिल लिया करते हैं।
बिना शर्त की तमाम शर्तों को
ज़िन्दगी की तरह रोज़ाना ही
बेशर्त ही जी लिया करते हैं।
शोर की चुप,सन्नाटे में छुपी आवाज़ों
और तमाम अनकही बातें
मन ही मन में चुपचाप
सुन लिया करते हैं
कुछ न होकर भी
बहुत कुछ होने का गुमान ही सही
एक अहसास से लबरेज़
ज़िन्दगी रोज़ ही जी लिया करते है............
-----प्रियंकां
ए ज़िंदगी शायद मेरी तुझको जरूरत न रही
तेरी क्या खुद की भी अब मुझे चाहत न रही
जज़्ब हो गया कुछ इस तरह तेरा वज़ूद मुझमे
इस आइने में मेरी अब तो वो सूरत न रही
मायूस अंधेरों में रूह फिरती है अब तो मेरी
ख्यालों में कभी तू ही था और की सूरत न रही
इन खामोशियों ने कुछ इस तरह घेरा मुझको
तुझसे क्या अब खुद से भी कोई गुफ्तगू न रही
अपनी तन्हाइयों से ही इश्क़ हो चला हमको
तेरे ख्याल के सिवा अब कोई जुस्तजू न रही
बहुत थक गई हूँ लड़ के बेरुखी से तेरी
किसी भी सवाल को ज़वाब की आरज़ू न रही
क्यों खोजूं तुझे सारे जहाँ की गलियों में
हमसाया तू है हर वक़्त मै ही रूबरू न रही
______________ प्रियंका पांडे
फिसल ही जाता है वक़्त
बंद मुट्ठी से भी रेत की तरह
छूट जाती है तमाम ज़िद्दी यादें
बीच उँगलियों के
मानो जोड़ लिया हो एक रिश्ता मुझसे
कल की खुशियों और आज के दर्द तक का
सागर सी ज़िन्दगी
कभी अलमस्त कभी शांत
निभा लेती है रिश्ते जाने कैसे कैसे
कभी रेत के घरोंदों जैसे
बनते ढहते सपने
कभी जाने क्या क्या खुद में समेटे
या दफ़न किये बहुत कुछ खुद में
रेत के किनारों जैसे
या
आँख में रेत से चुभते किसी रिश्ते जैसे
जिनकी आज ज़रूरत। ही न रही .......
------प्रियंका े

वादे

चलते चलते ठहरा था
बादल कोई कभी यूँ ही
कर गया नर्म ज़मी
सूखी सी पड़ी थी जो अब तक
ठहरना फितरत न सही
बंध के रहना यूँ मुमकिन भी न था
रूठे मौसम सा जाऊँगा
पर लौट के फिर आ जाऊँगा
देख लेना तू
कह देता था ज़मी से अक्सर
बदले मौसम,हवाएँ और
जीने के तरीके भी शायद
सिमट चुकी है नमी भी
पलकों की कोरों में
बंदिशों में जकड़ी आवाज़ें भी
घुट के रह जाती है कहीं
खुद ही खुद से भी
कह पाती कुछ भी
हाँ....
यकीन है तो इतना बस
कुछ वादे आज भी
कहीं कभी पूरे हुआ करते है..........
------प्रियंका

दौर

जैसे आये थे चुपचाप किसी मोड़ पर मुड़ जायेंगे
बुरे दौर हैं आये थे कुछ ठहरेंगे फिर गुज़र जायेंगे
गुज़रते रहना ही तो फितरत है वक्ते दरिया की
आज बिगड़े हैं पल ख़ुद ही कल सवंर जायेंगे
बंधे हों जंजीरों में तो कैसे वो अपने सच्चे रिश्ते
ग़र अपने हुए तो बताओ भला और किधर जायेंगे
लेके आयी है कुछ किरणें झिलमिल रौशनी संग में
बहुत मुमकिन है उजाले कुछ देर और ठहर जायेंगे
बहुत उम्मीद से आये है आज कुछ मांगने दर पर तेरे
होकेर मायूस बता दे अब किस और शहर जायेंगे
-----प्रियंका

खामोशियाँ.

साँझ ढले परछाइयों की मानिंद
उम्मीद के दरख्तों से
मायूस सी उतर आती है

तलाशती हैं
अंधेरों में गुम होते वज़ूद अपने

ख्वाहिशें खुद ही खुद से
कर लिया करती हैं सारी बाते

टकराकर लौट आती हैं
वापस नाउम्मीद
उनकी आवाज़ें जाने कितनी
बेज़ुबान तो नहीं
पर अहसास ही गुम हैं शायद
बड़ी ज़िद्दी सी होती हैं
कुछ खामोशियाँ.............!!
----प्रियंका ै

रिश्ते

समेट लेते हैं 
खामोशियों से चंद अल्फ़ाज़
खुशबुएँ अहसासों की
आँखों का सच और 
सादादिली बातों की
कुछ वादे अनकहे
और
यकीन अपने होने का
मुँह चिढ़ाते दूरियों
और हाथों की चंद लकीरों को
ये रिश्ते भी.......
कब अल्फ़ाज़ों के
मुहताज़ हुआ करते हैं!!
-----प्रियंका

विदा तुम्हें हे विगत वर्ष

विगत वर्ष सहेज चला
दुःख बेचैनी सारी उलझन
अंजुरी भर नव उल्लास दिए
सुख की पुलकन मन की छलकन
है ज्ञात किसे वो गया कहाँ
चलता जाता या है ठहरा
है नियति यही है लेख यही
इक बंजारा यायावर जो ठहरा
स्मृतियाँ कितनी ही मधुरिम
जाने कितने पल छिन स्वर्णिम
जीवन पृष्ठों पर अंकित कर
कुछ अश्रुबिंदु कुछ स्मित मर्मर
आगत के स्वागत में तत्पर
स्मरण रहोगे तुम सत्वर
जीवन सुखमय हो बढे हर्ष
है विदा तुम्हें हे विगत वर्ष
----प्रियंका

सूना हर क्षड तेरी सुधियों बिन

मनभावन मोहक मधुरिम सी
हंसती खिलती मन में बसती
पुलकित जीवन प्रमुदित पल छिन
सूना हर क्षड तेरी सुधियों बिन
अरुणोदय की किरणों सी स्मित
सपनों के तारो से ज्यों अंकित
कभी मधुर मधुर हो कभी विकल
नित नव अनुभुति से विह्वल
रचतीं नींदें सजते से दिन
सुना हर क्षड़ तेरी सुधियों बिन
स्मृतियों की लहरों में बहकर
आ जाते मोती दृग पुलिनों पर
हो नेह पुष्प से सुरभित मन
आशा से प्रमुदित उर उपवन
इक आस धरे कट जाते दिन
सूना हर क्षड़ तेरी सुधियों बिन
-----प्रियंका पांडे

ख्वाहिशें..................... बेमानी सी

जिद कोई चांद तोडने की
या छूने की आसमान
कभी लकीरों को मुंह चिढाती
तकदीर से लडने चलती
कभी खामोश कभी मायूस
कभी खुशियों से लबरेज
भूल जाया करती हैं
झूठे हौसलों में खुद को
कुछहौसले उडना भूल जाते हैं
कुछ को उडने की इजाजत ही नहीं
बडी मासूम और नादान हुआ करती हैं
कुछ ख्वाहिशें.....................
बेमानी सी...........
-----प्रियंका
मन छूना चाहता है आकाश
भरता है उड़ान
बाधाए काल गति की
कब रोक पायी हैं
रफ़्तार हौसलों की
पंखों तुमको इज़ाज़त नहीं
रुकने की
तय करना है
अंतहीन सफ़र
पानी हैं मंजिलें
और मुझे भरोसा है
पंखों से ज्यादा
खुद पर...........
----प्रियंका
टूट कर बिखर गए हैं कुछ पीले पत्ते तुम्हारी यादों के
बहुत कोशिश की सहेज कर रख लूं उन्हें पर...........
वक्त की तेज हवा उन्हें ले ही गई दूर मुझसे
धीरे धीरे निगाहों से ओझल होते देखती रही बस
तुम ही तो कहते थे.....
दुनिया में हमेशा के लिए कुछ भी नहीं रहता........
मालूम है मुझको भी....
पर मेरे जीवन का ये पेड आज भी इंतजार में है
तुम्हारी यादों की नई कोंपलों की
ठूंठ खडा सोचता है कि तुम्हारे आने की नई बहारों के साथ
खिलेंगे कुछ उजले फूल इन पर भी कभी.
बीत जाएगा उदासी से भरा ये पतझड़ भी
मुझे बस यकीन है तुम्हारी बातों पर...........
दुनिया में हमेशा के लिए कुछ भी नहीं रहता.................
--------------प्रियंका
साथ चल ना पाओ तो बस इक पैगाम दे देना
हमारे तनहा जीने का कोई सामान दे देना
वफाये रास ना आये नहीं मायूस तुम होना
कोई बस एक अच्छा सा मुझे इलज़ाम दे देना
तिजारत करती है दुनिया नहीं हर चीज़ बिकती है
मेरे सारे अश्कों का हो सके तुम दाम दे देना
गयी है साथ ही तेरे हंसी भी मेरे होंठो की
कभी जो गर मिले तुमको मेरा पैगाम दे देना
बहुत छोटी सी खुशियाँ हैं नहीं है आरज़ू ज्यादा
कभी जो सिर्फ मेरी थी वही बस शाम दे देना
बहुत है सादा दिल मेरा नहीं है जानता धोखे
लम्हे साथ जो गुज़रे मुहब्बत नाम दे देना
कभी जो लौट पाओ तो गुज़ारिश है चले आना
वफाओं का मेरी हमदम बस अंजाम दे देना
-----प्रियंका.