अक्सर सुनती हूं तुम्हे कुछ कहते……
चुने हैं तमाम लफ्ज तुम्हारी खामोशियों
से भी
जब एक चुप सी ठहर जाती है हमारे बीच
तब भी महसूस किया है तुम्हारा मूक संवाद
जाने कितनी बार तुम्हारे आंखों की नमी
से भीगा है मन मेरा
जो तुमने कभी जाहिर न की मुझसे
मन की संवेदनाएं तो हमेशा परे होती
हैं
भाषा और संवाद से……
फिर भी कहते रहो……………..
तुम्हें सुनना अच्छा लगता है
-------प्रियंका
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