Wednesday, 26 March 2014

miss u chacha ji

विधि ने यहीं तक संग लिखा था
सुनो कहारों अब रख दो डोली
जीवन सागर से पार है जाना
अब व्यथा कथा परिपूर्ण होली

समिधाओं से सजी वेदिका
मंत्रों की ध्वनियां करतीं शोर
नूतन वस्त्र से वसन सजा है
चंदन महके चारों ओर
शुभ अवसर है आज मिलन का
स्वागत में सजती आज रंगोली
विदा तुम्हें अनजानी टोली
सुनो कहारों अब रख दो डोली

कर्मों का लेखा आज यहीं हो जाएगा
विश्व हाट में पंछी फिर कौन रूप में आएगा
माया के सारे बंधन आज यहीं भस्म हुए
संग बीते जो पल वह सारे स्वप्न हुए
यह सुन्दर प्रतिमा कभी नहीं अब डोलेगी
कितना भी यत्न करो दूर देश ही बोलेगी
अब जलने दो माया की होली
सुनो कहारों अब रख दो डोली


कदम शिथिल हैं जन परिजन के
पर यात्रा अब रूक पाएगी
अन्तिम बिन्दु पर पंहुची है
अब आगे और कहां बढ पाएगी
रूकती डोली दे रही है सबको संदेशा
राह यही है बस आज नहीं तुमको अंदेशा
यहीं ग्रन्थियां सारी जाती हैं खोली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
अब व्यथा कथा परिपूर्ण होली............
                ------प्रियंका






4 comments:

  1. उफ़्फ़ !! किसी भी अपने का जाना कितना दर्द देता है ......
    भावुक करती रचना
    श्रद्धांजलि ........... !!

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  2. प्रियंका,
    तुम हो इंसानी दुनिया में एक वो इंसान, जो समझती हो इंसान क्या है...
    तुम्हें और इस रचना में तुम्हारे द्वारा पिरोये गये हर अल्फाज को मेरा
    सादर नमन,
    संजीव चौहान

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    1. ह्रदय से आभार संजीव भैया

      कुछ अपनी ही लाइनें....
      ...जब आहत मन अपनी पीर सुने
      व्यथा उमड़ पन्नों पर आये फिर कोई इक गीत बने

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