विधि ने यहीं तक संग लिखा था
सुनो कहारों अब रख दो डोली
जीवन सागर से पार है जाना
अब व्यथा कथा परिपूर्ण होली
समिधाओं से सजी वेदिका
मंत्रों की ध्वनियां करतीं शोर
नूतन वस्त्र से वसन सजा है
चंदन महके चारों ओर
शुभ अवसर है आज मिलन का
स्वागत में सजती आज रंगोली
विदा तुम्हें अनजानी टोली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
कर्मों का लेखा आज यहीं हो जाएगा
विश्व हाट में पंछी फिर कौन रूप में आएगा
माया के सारे बंधन आज यहीं भस्म हुए
संग बीते जो पल वह सारे स्वप्न हुए
यह सुन्दर प्रतिमा कभी नहीं अब डोलेगी
कितना भी यत्न करो दूर देश ही बोलेगी
अब जलने दो माया की होली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
कदम शिथिल हैं जन परिजन के
पर यात्रा अब न रूक पाएगी
अन्तिम बिन्दु पर आ पंहुची है
अब आगे और कहां बढ पाएगी
रूकती डोली दे रही है सबको संदेशा
राह यही है बस आज नहीं तुमको अंदेशा
यहीं ग्रन्थियां सारी जाती हैं खोली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
अब व्यथा कथा परिपूर्ण होली............
------प्रियंका
उफ़्फ़ !! किसी भी अपने का जाना कितना दर्द देता है ......
ReplyDeleteभावुक करती रचना
श्रद्धांजलि ........... !!
we miss u chacha ji.
ReplyDeleteप्रियंका,
ReplyDeleteतुम हो इंसानी दुनिया में एक वो इंसान, जो समझती हो इंसान क्या है...
तुम्हें और इस रचना में तुम्हारे द्वारा पिरोये गये हर अल्फाज को मेरा
सादर नमन,
संजीव चौहान
ह्रदय से आभार संजीव भैया
Deleteकुछ अपनी ही लाइनें....
...जब आहत मन अपनी पीर सुने
व्यथा उमड़ पन्नों पर आये फिर कोई इक गीत बने