श्रम ताप हरो मन का आकर
सुख सुषमा के पावन दिनकर
अब क्लान्त जगत को श्रान्त करो
नव किरण बिखेरो रजनी हर
शुचि प्रेम सुधा पावन भर दो
झलके स्मित अधरों पर मर्मर
आतप्त करो जलते मन को
करुणामय हस्त वरद धर कर
अस्ताचल सूरज चंद्र उदित
हो स्तब्ध सांझ रजनी प्रमुदित
जीवन को अनगिन रूप दिए
पर अंत तुम्ही सबकुछ नश्वर
नक्षत्र यहां जलते झिलमिल
शशि निशि की भी पलकें तंद्रिल
बन सुखद स्वप्न मन में विचरो
संतृप्त करो शीतलता भर
-------प्रियंका
सुख सुषमा के पावन दिनकर
अब क्लान्त जगत को श्रान्त करो
नव किरण बिखेरो रजनी हर
शुचि प्रेम सुधा पावन भर दो
झलके स्मित अधरों पर मर्मर
आतप्त करो जलते मन को
करुणामय हस्त वरद धर कर
अस्ताचल सूरज चंद्र उदित
हो स्तब्ध सांझ रजनी प्रमुदित
जीवन को अनगिन रूप दिए
पर अंत तुम्ही सबकुछ नश्वर
नक्षत्र यहां जलते झिलमिल
शशि निशि की भी पलकें तंद्रिल
बन सुखद स्वप्न मन में विचरो
संतृप्त करो शीतलता भर
-------प्रियंका
अति सुन्दर अभिव्यक्ति , सुन्दर शब्दावली का सुन्दर संयोजन ,बधाई
ReplyDeleteआभार सुरेश सर
Deleteअदभुत शब्द संयोजन एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार पंकज त्रिवेदी सर
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteजीवन को अनगिन रूप दिए
ReplyDeleteपर अंत तुम्ही सब कुच्छ नश्वर
सत्य- यथार्थ। परिभाषित ।
जीवन को अनगिन रूप दिए
ReplyDeleteपर अंत तुम्ही सब कुच्छ नश्वर
सत्य- यथार्थ। परिभाषित ।