Sunday 1 March 2015

सागर

सागर.....
समेट लेता है
कही अनकही
खट्टी मीठी
सारी शिकायतों
के पुलिंदे
मन की
लहरे छुपाये
सहेजता है
कुछ पुरानी यादें
चंचल नदी
दे जाती है
तमाम उलाहने
और
फिर फिर
---प्रियंका

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