Sunday 1 March 2015

अलसाई पांखी सी आँखें कितने सपने चुन लाती है

गीत -----
कुछ मोहक से सपन पंख ले
दूर गगन तक फिर आती है
अलसाई पांखी सी आँखें
कितने सपने चुन लाती है
नरम चांदनी कभी पिघल कर
मन के भीतर रचबस जाए
कुछ सोयी जागी आँखों में
जब भी कोई अपना आये
मन भीतर भी यूँ सहसा ही
कितनी खुशबू भर जाती है
अलसाई पांखी सी......
नयनों के झूठे सपनों को
बस हौले से तुम छू लेना
होंगे तेरे सारे अपने
बस तुम मेरे ही हो लेना
बोलती आँखे जाने कब क्या
इक दूजे से सुन जाती है
अलसाई पांखी सी.........
-----प्रियंका

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