- मैंने तुमको फूलों में खोजा तुम कहीं हवाओं में महके
- पूरी दुनिया में खोजा जाकर तुम बंद आँखों में थे रहते
- खोली आंखें तो आंसू संग क्यूँ आँखों से बह जाते
- छिपा लूं सोचा हाथो में पर आंसू भी कब तक मेरे रहते
- -----प्रियंका
नारी मन --- कर्तव्यों और सम्बन्धों का निर्वहन करते जीवन पर्यंत झंझावातों का सामना करते और प्रतिदिन अनगिनत हिसाब किताब करते हुए उन पलों का सही सही आकलन कहां कर पाता है जो उसने स्वयं के लिए जिए......... अंतर्मन के कोमल नन्हें पंखों से अनन्त आकाश की ऊंचाइयां नापने का एक प्रयास....
Wednesday, 26 March 2014
tum
मत उम्मीद रख जहां में लोगों से वफाओं की
मत उम्मीद रख जहां में लोगों से वफाओं की
सियासी फैसले दिलों के जाने कितने मोड लेते हैं
नवाकिफ भी नहीं लोग रंजोगम से किसी के
पलकों के पर्दे में बस आंसू बेसहारा छोड देते हैं
सितारा हो जब तलक चमकोगे उनकी निगाहों में
फीकी चमक वालों से सुना है वो नाता तोड लेते हैं
मुखौटे ही मुखौटे हैं जहां में अजब ये दौर है देखो
सादगी को भी साजिश में चालों से जोड देते है
दूरियां बढती गईं फासले बस दो कदम ही थे
सच को बिना जाने अब लोग रिश्ते तोड देते हैं
पत्थरों की तानाशाही में घुट-घुट के हैं मर जाते
आइने थक हार कर आइना बनना छोड देते हैं
------प्रियंका
miss u chacha ji
विधि ने यहीं तक संग लिखा था
सुनो कहारों अब रख दो डोली
जीवन सागर से पार है जाना
अब व्यथा कथा परिपूर्ण होली
समिधाओं से सजी वेदिका
मंत्रों की ध्वनियां करतीं शोर
नूतन वस्त्र से वसन सजा है
चंदन महके चारों ओर
शुभ अवसर है आज मिलन का
स्वागत में सजती आज रंगोली
विदा तुम्हें अनजानी टोली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
कर्मों का लेखा आज यहीं हो जाएगा
विश्व हाट में पंछी फिर कौन रूप में आएगा
माया के सारे बंधन आज यहीं भस्म हुए
संग बीते जो पल वह सारे स्वप्न हुए
यह सुन्दर प्रतिमा कभी नहीं अब डोलेगी
कितना भी यत्न करो दूर देश ही बोलेगी
अब जलने दो माया की होली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
कदम शिथिल हैं जन परिजन के
पर यात्रा अब न रूक पाएगी
अन्तिम बिन्दु पर आ पंहुची है
अब आगे और कहां बढ पाएगी
रूकती डोली दे रही है सबको संदेशा
राह यही है बस आज नहीं तुमको अंदेशा
यहीं ग्रन्थियां सारी जाती हैं खोली
सुनो कहारों अब रख दो डोली
अब व्यथा कथा परिपूर्ण होली............
------प्रियंका
Thursday, 13 March 2014
अब तो तू आ जा चंदा
कुछ अपनी ही धुन में रहती
एक मुग्धा सी अपलक तकती
एक चकोरी पंथ निहारे
अब तो तू आ जा चंदा
तुझ संग हंसना तुझ संग रोना
तुमसे मिलते ही खुश होना
तू ही बसे उसके मन में
हो चाहे कितनी दूर तू चंदा
वह पगली बस यूं ही सोचे
उसकी खुशियों में तू खिल जाता
गम में उसके तू घट जाता
पर कहां भला तू उसका चंदा
तू तो संग चांदनी आता जाता
उस संग ही बस हर्षाता
चांद चांदनी इक दूजे के
तू और भला किसका चंदा
कुछ भोले सपने मन में लिए
इक झूठे से भ्रम में जिए
उसकी मासूम सी ख्वाहिश पर
रहा सदा मुस्काता चंदा
--प्रियंका
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