जागत- जागत ताकत-ताकत हेरत दीठि रही पथराई
सोच रहा मन
पागल कातर होकर नाहक प्रीत लगाई
जागत सोवन व्याकुल है तुम देख सको नहि पीर पराई
आस धरे मन ताकत है पथ सोच रहा तेरी निठुराई
पावक मोहक फूल खिले बगिया चहकी महकी अमराई
गावत नाच रहीं सखियाँ मनमोहन मोहि बड़ी सुधि आई
मोहक तान सुनी मुरली धुन की मन की कलिका हरषाई
छेड़ रही सखियाँ सगरी मनमोहन प्राण सखी इतराई
जानत हो तुम
केशव प्राण रहे तुमरे बिन ही अकुलाई
साथ रहो तुम चाहत हूं बस मोहिं नहीं कछु देत सुझाई
सांस बसे तुम प्रेमहिं बंधन काट सको मिल जाय रिहाई
जाय सको मन मानस से तब मैं समझूं तुमरी प्रभुताई
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प्रियंका
बहुत उमदा रचना
ReplyDelete☆★☆★☆
"मोहक तान सुनी मुरली धुन की मन की कलिका हरषाई
छेड़ रही सखियां सगरी मनमोहन प्राण सखी इतराई"
वाह वाऽह…!
आदरणीया प्रियंका जी
सुंदर छंदों के लिए हृदय से साधुवाद !
आपके ब्लॉग की कुछ अन्य रचनाएं पढ़ कर भी बहुत अच्छा लगा
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
आपकी इस रचना में एक अलग ही एसेंस है प्रियंका...चार बार पढी ..मजा आ गया
ReplyDeleteवाह प्रियंका ..अद्भुत..!!!
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