अभीप्सित नहीं स्नेह
इतना
कि ताजमहल में कम्पन हो
साथ चलें हर पग पर हम
फिर भी सुन्दर दूरी साथ रहे
साथ चलें हर पग पर हम
फिर भी सुन्दर दूरी साथ रहे
सुघर पारखी बन कर तुमने
ये जीवन कंचन कर डाला
ये जीवन कंचन कर डाला
सम्पूर्ण बने
न जीवन मेरा
पारस की सदा ही आस रहे
पारस की सदा ही आस रहे
नियति साथ चलती है सबके
भाग्य रचाए खेल अनेक
बाद दिवस की कड़ी धूप के
बस स्वप्निल संध्या साथ रहे
तुम मन मानस के देव बने
बस इतना सा वर दे देना
पूरी न हो आस सभी
अधूरी ही मन चाही साध रहे
------प्रियंका —
नियति साथ चलती है सबके
ReplyDeleteभाग्य रचाए खेल अनेक
सत्य है। सुन्दर प्रस्तुति।
शिव ने शायद द्वितीया चंद्रा इसी लिए शीश पर धारण किूया है की प्रगती की निरंतरता बनी रहे. पारस की आस और मान की साध अधूरी रखने की कामना........ अद्भुत अद्भुत....
ReplyDeleteशिव ने शायद द्वितीया चंद्रा इसी लिए शीश पर धारण किूया है की प्रगती की निरंतरता बनी रहे. पारस की आस और मान की साध अधूरी रखने की कामना........ अद्भुत अद्भुत....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना प्रियंका जी
ReplyDeleteअति सून्दर
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