Saturday 19 July 2014

श्रम ताप हरो मन का आकर
सुख सुषमा के पावन दिनकर
अब क्लान्त जगत को श्रान्त करो
नव किरण बिखेरो रजनी हर

शुचि प्रेम सुधा पावन भर दो
झलके स्मित अधरों पर मर्मर
आतप्त करो जलते मन को
करुणामय हस्त वरद धर कर

अस्ताचल सूरज चंद्र उदित
हो स्तब्ध सांझ रजनी प्रमुदित
जीवन को अनगिन रूप दिए
पर अंत तुम्ही सबकुछ नश्वर

नक्षत्र यहां जलते झिलमिल
शशि निशि की भी पलकें तंद्रिल
बन सुखद स्वप्न मन में विचरो
संतृप्त करो शीतलता भर
-------प्रियंका

7 comments:

  1. अति सुन्दर अभिव्यक्ति , सुन्दर शब्दावली का सुन्दर संयोजन ,बधाई

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  2. अदभुत शब्द संयोजन एवं प्रस्तुति

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    1. आभार पंकज त्रिवेदी सर

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  3. सुंदर रचना

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  4. जीवन को अनगिन रूप दिए
    पर अंत तुम्ही सब कुच्छ नश्वर
    सत्य- यथार्थ। परिभाषित ।

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  5. जीवन को अनगिन रूप दिए
    पर अंत तुम्ही सब कुच्छ नश्वर
    सत्य- यथार्थ। परिभाषित ।

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