Wednesday 5 March 2014

तुम और मैं.......

तुम और मैं.......
हर्फ थे दो अलग अलग
तुमसे ही मिलकर तो
मायने मिले जिन्दगी को
एक मुकम्मल एहसास
कुछ महकते ख्वाब
कुछ सतरंगी सपने.......
पर आज वक्त की तेज हवाएं
ले आईं हैं हमें कितनी दूर
एक दूसरे से.............
आज तुम
बुलंदी पर हो शोहरत की
और मैं भी महफूज हूं
किसी खाने में.....
हमारे बीच की दूरियां
अक्सर सवाल करती हैं
और मायूस खडे हम
सोचते हैं अपना हासिल......
फतह में शिकस्त थी
या शिकस्त में फतह
        ----प्रियंका



2 comments:

  1. बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..

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  2. बहुत खूब .... सुंदर

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