Friday 7 March 2014

कहां तुम्हें खोजूं मैं कृष्णा

कहां तुम्हें खोजूं मैं कृष्णा
तुम्हीं बताओ कहां नहीं तुम
तप में हो जप में हो तुम
धरा पे हो नभ में हो तुम
ग्यान में हो ध्यान में हो
मिथ्या भक्ति के अभिमान में तुम
तुम्हें ये जग खोजे क्यूं सदा ही
जग के कण कण प्राण में हो तुम
सकल जगत में हो तुम समाए
कहां मैं खोजूं कहां नहीं तुम
रचा है एक राधा का भाग्य तुमने
जिसमें होकर भी संग नहीं तुम

व्रज की गलियों में तुम दीखे
डालों पर कदम्ब के हो तुम
द्वारका के आसन पर विराजे
गोपियों के संग में हो तुम
कर्मभूमि कुंज गलियां
ही गीता के ज्ञान में हो तुम
सकल जगत है तेरी खोज करता
प्रेम भरे मन में ही हो तुम
कहती है दुनिया राधेश्याम देखो
कहीं भी मुझसे पृथक नहीं तुम
यही तो मेरा है भाग्य कृष्णा
अगर कहीं हो तो हो बस यहीं तुम.

                 --------प्रियंका

8 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार सुरेश दादा।

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  2. बेहतरीन, अभिव्यक्ति
    सच मे कोमल सी रचना ...

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