Wednesday 5 March 2014

ज़िन्दगी......... एक शतरंज की बिसात

ज़िन्दगी.........
एक शतरंज की बिसात

हम भी 
अपने अपने किरदार
के मोहरों में 
बस चलते जाते

जाने कितनी बाजियां 
जीतते और हारते
निकल आये हैं
जाने कितनी दूर
एक दूसरे से

अपनी अपनी
मंजिलों की ओर
बढ़ते गए हम........

और आज.....
महफूज़ हैं
कद्दावर मोहरों
की तरह
अपने अपने
खानों में

और तनहा खड़े
सोचते हैं
हमारे बीच के
इन खाली खानों में
अब भरना क्या है.......
----प्रियंका

2 comments:

  1. प्रशंसनीय रचना - बधाई

    आग्रह है-- हमारे ब्लॉग पर भी पधारे
    शब्दों की मुस्कुराहट पर ...खुशकिस्मत हूँ मैं एक मुलाकात मृदुला प्रधान जी से

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  2. जी अवश्य...... आभार

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