Monday 3 February 2014

ज़िन्दगी


बहुत मायूस सा
गुज़रता दिन
बोझिल से
रेंगते पल
कुछ शिकायतें
खुद से खुद की
कुछ मायूसियां
औरों से
ज़िन्दगी के
सुस्त पड़ते
से कदम
अचानक...


माँ कह कर
लिपटते दो
नन्हे हाथ
कानो में गूंजती
किलकारी सी
और फिर
चल पड़ी
ज़िन्दगी
अपनी नयी
रफ़्तार से


©प्रियंका

3 comments:

  1. वाह बहुत खूब।

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  2. अत्यंत ह्र्दयस्पर्शी !
    अतुकांत विधा में : पंक्ती दर पंक्ती मर्म की चुम्बकीय शक्ती से प्रसार लेती अभिव्यक्ती !

    बहुत ही भावपूर्ण... शुभकामनायें !

    सादर

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